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मिज़ो नेशनल फ़्रंट के अध्यक्ष ज़ोरमथंगा ने शनिवार को तीसरी बार मिज़ोरम के मुख्यमंत्री की शपथ ली. इससे पहले वो इस पद पर 1998 से 2008 तक लगातार दो कार्यकाल के लिए रह चुके हैं.
पूर्वोत्तर भारत में कांग्रेस के आख़िरी क़िले फ़तह करने का सेहरा ज़ोरमथंगा के सिर पर बांधा जा रहा है.
40 विधायकों वाली मिज़ोरम विधानसभा में एमएनएफ़ ने 26 सीटें जीती हैं. एमएनएफ़ ने लगातार 10 साल से ललथनहावला की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार को सत्ता से बेदख़ल कर दिया है.
10 साल के वनवास के बाद सत्ता में वापसी करने वाले 74 वर्षीय ज़ोरमथंगा की ख़ुद अपनी कहानी कम दिलचस्प नहीं है.
केवल मिज़ोरम ही इकलौता ऐसा राज्य है जहाँ कोई विद्रोही संगठन केंद्र के साथ शांति समझौते पर दस्तख़त कर सक्रिय राजनीति के रास्ते सत्ता में आया और 1986 से ही इस राज्य में अमन बरकरार है.
60 के दशक में सशस्त्र संघर्ष शुरू करने वाला संगठन मिज़ो नेशनल फ्रंट अब मिज़ोरम की एक प्रमुख राजनीतिक पार्टी है.
पहले पु लालडेंगा के हाथों में इसकी कमान थी और अब पु ज़ोरमथंगा इस संगठन के मुखिया हैं.
म्यांमार के घने जंगलों के गुरिल्ला अड्डों से मुख्यमंत्री के पद तक का ज़ोरमथंगा का सफ़र और मिज़ो राज्य की कहानी कम दिलचस्प नहीं है.
मिज़ोरम के हालात
दारफुंगा और वान्हनुअइछिंगी के घर में जन्मे ज़ोरमथंगा आठ भाई-बहनों में नीचे से दूसरे नंबर पर है.
उनका जन्म म्यांमार सीमा के पास मिज़ोरम के चंफई जिले के सामथांग गाँव में 13 जुलाई 1944 को हुआ था. उनके पाँच भाई और तीन बहन हैं.
1960 में चंफई में ही स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद ज़ोरमथंगा ग्रेजुएशन के लिए इंफाल के डीएम कॉलेज आ गए.
युवा ज़ोरमथंगा शिक्षक बनना चाहते थे लेकिन मिज़ोरम की मुश्किल भरी सामाजिक राजनीतिक परिस्थितियाँ उन्हें अपने राज्य वापस ले आईं.
वे लालडेंगा की अगुवाई वाली मिज़ोरम नेशनल फ्रंट में शामिल हो गए.
राजनीति में शुरुआत
एमएनएफ़ एक प्रतिबंधित संगठन था और गुप्त तरीके से एक अलग देश के लिए सक्रिय था. इन्हीं हालात में 1966 में पास हआ एक ग्रेजुएट बाग़ी बन गया था.
ज़ोरमथंगा को रन बंग इलाक़े के सचिव के पद की पेशकश की गई और उन्होंने तीन साल तक ये ज़िम्मेदारी संभाली.
साल 1969 में एमएनएफ के सारे कैडर तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) चले गए. बाद में लालडेंगा ने ज़ोरमथंगा को अपना सचिव बना लिया जिस पद पर वे सात साल तक बने रहे.
साल 1979 में वे एमएनए
मिज़ो शांति समझौता
ज़ोरमथंगा को असम राइफल्स के क्वॉर्टर गार्ड में रखा. इसकी वजह ये थी कि वे असम राइफल्स को आईज़ॉल शहर से बाहर ले जाने के लिए सक्रिय रूप से दबाव बना रहे थे.
साल 1990 में हुई लालडेंगा की मृत्यु तक ज़ोरमथंगा उनके सबसे भरोसेमंद सहयोगी थे.
सशस्त्र संघर्ष के दिनों में और उसके बाद के वक्त में भी ज़ोरमथंगा ने लालडेंगा के दूत की हैसियत से कई दक्षिण एशियाई देशों की यात्रा की.
25 साल के संघर्ष के बाद एमएनएफ ने 30 जून 1986 को ऐतिहासिक मिज़ो शांति समझौते पर दस्तखत किया.
1987 में मिज़ोरम को पूर्ण राज्य का दर्जा मिल गया. इसी ऐतिहासिक मिज़ो समझौते के बाद राज्य की राजनीति में ज़ोरमथंगा का पदार्पण हुआ.
एमएनएफ़ की कमान
साल 1987 के पहले मिज़ोरम विधानसभा चुनाव में जोरमथंगा अपने गृह निर्वाचन क्षेत्र चंफई से पहली बार विधायक बने.
बाग़ी से मुख्यमंत्री बने लालडेंगा के मंत्रिमंडल में उन्हें वित्त और शिक्षा मंत्रालय की ज़िम्मेदारी दी गई.
साल 1990 में लालडेंगा के निधन के बाद ज़ोरमथंगा के हाथ में एमएनएफ की कमान आ गई.
साल 2008 में कांग्रेस के एक नए उम्मीदवार टीटी ज़ोथनसांगा के हाथों चंफई सीट से हारने तक ज़ोरमथंगा यहीं से विधायक चुने जाते रहे थे.
ललथनहावला की अगुवाई वाली कांग्रेस से मुक़ाबले के लिए 1998 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले ज़ोरमथंगा ने मिज़ोरम पीपल्स कॉन्फ्रेंस से गठजोड़ कर लिया.
सत्ता विरोधी लहर
एमएनएफ़ और एमपीसी के सियासी गठजोड़ ने राज्य विधानसभा की 40 सीटों में से 33 जीत ली थीं.
इस जीत के बाद ज़ोरमथंगा ने एक गठबंधन सरकार की कमान सँभाली.
हालांकि गठबंधन सरकार की ये कोशिश नाकाम रही और 2003 के विधानसभा चुनाव में एमएनएफ़ ने अकेले ही जनता के बीच गई.
ज़ोरमथंगा पर मिज़ोरम के लोगों ने भरोसा बरकरार रखा और लगातार दूसरी बार उन्हें सत्ता मिली.
10 साल तक सत्ता में बने रहने के बाद 2008 के चुनाव में ज़ोरमथंगा को पुनर्जीवित हुई कांग्रेस ने सत्ता विरोधी लहर पर सवार होकर क़रारी शिकस्त दी
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