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कांग्रेस के लिए राजस्थान में वापसी सिर्फ 2019 के लिए ही जरूरी नहीं है बल्कि इसके जरिए अशोक गहलोत और सचिन पायलट के राजनीतिक सफर का रोडमैप बनेगा। वहीं हार की स्थिति में दोनों की राज्य में राजनीतिक ताकत पर सवाल उठेंग
वसुंधरा का व्यवहार
यहां पर सरकार से सबसे बड़ी नाराजगी सीएम वसुंधरा राजे तक सीमित पहुंच और उनका व्यवहार है। यहां तक कहा जाता है कि बीजेपी विधायक और मंत्रियों को भी सीएम तक बात पहुंचाने में वक्त लग जाता है। इसी बात पर पार्टी के भीतर भी उनसे नाराजगी है। कांग्रेस उम्मीदवार जनसभाओं में लोगों से पूछते हैं कि क्या उन्हें फिर से वही सीएम चाहिए जो राजशाही की प्रतीक बन चुकी हों? बीजेपी को यहां बड़ा वक्त इस मुद्दे पर वोटर्स की नाराजगी दूर करने में खपाना पड़ रहा है।
बेरोजगारों की नाराजगी
चुनाव के दरम्यान बेरोजगारी बड़ा मुद्दा बनी हुई है। पिछले चुनाव में वसुंधरा की तरफ से 15 लाख युवाओं को रोजगार देने का वादा किया गया लेकिन युवाओं का कहना है कि नई नौकरियां तो दूर सरकारी विभागों में रिक्त पदों को भी भरने की कोशिश नहीं हुई। ऐसे में बीजेपी अब गुस्से को देखते हुए रोजगार के 50 लाख अवसर उपलब्ध कराने और 21 वर्ष से अधिक उम्र के शिक्षित बेरोजगारों को पांच हजार रुपये बेरोजगारी भत्ता देने का वादा कर रही है।
एमएसपी का न मिलना
राज्य के किसान अपनी फसल का वाजिब मूल्य न मिलने से नाराज दिख रहे हैं। किसान दो तरह की दिक्कत बताते हैं, एक तो जिन फसलों का समर्थन मूल्य घोषित है, वह उन्हें नहीं मिल पा रहा। दूसरी दिक्कत यह कि तमाम फसलें भी सरकार की नजर-ए-इनायत से दूर हैं। उनके लिए अभी समर्थन मूल्य ही घोषित नहीं हुआ। गोरक्षा के नाम पर भीड़ के हमलों को देखते हुए दुधारू जानवर पाल कर जीविका चलाने वाले किसानों के लिए रोजी-रोटी के लाले पड़ गए हैं।
राजपूत फैक्टर
राजस्थान की हर विधानसभा सीट पर राजपूत अच्छी तादाद में हैं। खुद के खिलाफ एससी-एसटी ऐक्ट के दुरुपयोग और आनंदपाल एनकाउंटर के कारण ये वसुंधरा सरकार से नाराज हैं। कद्दावर नेताओं में शुमार जसवंत सिंह की पार्टी नेतृत्व की ओर से की गई उपेक्षा भी यहां आग में घी का काम कर रही है। उनके बेटे मानवेंद्र सिंह भी पिता के साथ हुए व्यवहार को राजपूत स्वाभिमान से जोड़ रहे हैं। राजपूतों की नाराजगी खत्म करने के लिए ही बीजेपी नेतृत्व राजनाथ सिंह से लेकर राज्यवर्द्धन राठौर तक को आगे किए हुए है।
राष्ट्रीय मुद्दों पर जोर
कांग्रेस की भरसक कोशिश चुनाव को स्थानीय मुद्दों पर केंद्रित कर गहलोत बनाम वसुंधरा बनाने की है, वहीं बीजेपी की तरफ से राष्ट्रीय मुद्दों को हवा देकर चुनाव को मोदी बनाम राहुल करने का प्रयास हो रहा है। बीजेपी कांग्रेस सरकारों के 60 साल का हिसाब मांग रही है। वह राहुल के गोत्र पर सवाल उठा रही है तो कभी राममंदिर निर्माण की बात कर रही है। वहीं कांग्रेस कह रही है कि बीजेपी मुंह छुपाने की कोशिश में विधानसभा के चुनाव में राष्ट्रीय मुद्दे उठा रही है और वह भी ऐसे जो कि अप्रासंगिक हो चुके
यहां पर सरकार से सबसे बड़ी नाराजगी सीएम वसुंधरा राजे तक सीमित पहुंच और उनका व्यवहार है। यहां तक कहा जाता है कि बीजेपी विधायक और मंत्रियों को भी सीएम तक बात पहुंचाने में वक्त लग जाता है। इसी बात पर पार्टी के भीतर भी उनसे नाराजगी है। कांग्रेस उम्मीदवार जनसभाओं में लोगों से पूछते हैं कि क्या उन्हें फिर से वही सीएम चाहिए जो राजशाही की प्रतीक बन चुकी हों? बीजेपी को यहां बड़ा वक्त इस मुद्दे पर वोटर्स की नाराजगी दूर करने में खपाना पड़ रहा है।
बेरोजगारों की नाराजगी
चुनाव के दरम्यान बेरोजगारी बड़ा मुद्दा बनी हुई है। पिछले चुनाव में वसुंधरा की तरफ से 15 लाख युवाओं को रोजगार देने का वादा किया गया लेकिन युवाओं का कहना है कि नई नौकरियां तो दूर सरकारी विभागों में रिक्त पदों को भी भरने की कोशिश नहीं हुई। ऐसे में बीजेपी अब गुस्से को देखते हुए रोजगार के 50 लाख अवसर उपलब्ध कराने और 21 वर्ष से अधिक उम्र के शिक्षित बेरोजगारों को पांच हजार रुपये बेरोजगारी भत्ता देने का वादा कर रही है।
एमएसपी का न मिलना
राज्य के किसान अपनी फसल का वाजिब मूल्य न मिलने से नाराज दिख रहे हैं। किसान दो तरह की दिक्कत बताते हैं, एक तो जिन फसलों का समर्थन मूल्य घोषित है, वह उन्हें नहीं मिल पा रहा। दूसरी दिक्कत यह कि तमाम फसलें भी सरकार की नजर-ए-इनायत से दूर हैं। उनके लिए अभी समर्थन मूल्य ही घोषित नहीं हुआ। गोरक्षा के नाम पर भीड़ के हमलों को देखते हुए दुधारू जानवर पाल कर जीविका चलाने वाले किसानों के लिए रोजी-रोटी के लाले पड़ गए हैं।
राजपूत फैक्टर
राजस्थान की हर विधानसभा सीट पर राजपूत अच्छी तादाद में हैं। खुद के खिलाफ एससी-एसटी ऐक्ट के दुरुपयोग और आनंदपाल एनकाउंटर के कारण ये वसुंधरा सरकार से नाराज हैं। कद्दावर नेताओं में शुमार जसवंत सिंह की पार्टी नेतृत्व की ओर से की गई उपेक्षा भी यहां आग में घी का काम कर रही है। उनके बेटे मानवेंद्र सिंह भी पिता के साथ हुए व्यवहार को राजपूत स्वाभिमान से जोड़ रहे हैं। राजपूतों की नाराजगी खत्म करने के लिए ही बीजेपी नेतृत्व राजनाथ सिंह से लेकर राज्यवर्द्धन राठौर तक को आगे किए हुए है।
राष्ट्रीय मुद्दों पर जोर
कांग्रेस की भरसक कोशिश चुनाव को स्थानीय मुद्दों पर केंद्रित कर गहलोत बनाम वसुंधरा बनाने की है, वहीं बीजेपी की तरफ से राष्ट्रीय मुद्दों को हवा देकर चुनाव को मोदी बनाम राहुल करने का प्रयास हो रहा है। बीजेपी कांग्रेस सरकारों के 60 साल का हिसाब मांग रही है। वह राहुल के गोत्र पर सवाल उठा रही है तो कभी राममंदिर निर्माण की बात कर रही है। वहीं कांग्रेस कह रही है कि बीजेपी मुंह छुपाने की कोशिश में विधानसभा के चुनाव में राष्ट्रीय मुद्दे उठा रही है और वह भी ऐसे जो कि अप्रासंगिक हो चुके
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